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उ॒त सिन्धुं॑ विबा॒ल्यं॑ वितस्था॒नामधि॒ क्षमि॑। परि॑ ष्ठा इन्द्र मा॒यया॑ ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta sindhuṁ vibālyaṁ vitasthānām adhi kṣami | pari ṣṭhā indra māyayā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। सिन्धु॑म्। वि॒ऽबा॒ल्य॑म्। वि॒ऽत॒स्था॒नाम्। अधि॑। क्षमि॑। परि॑। स्थाः॒। इ॒न्द्र॒। मा॒यया॑ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मेघसंबन्धि नदीसंतरण विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त आप (मायया) बुद्धि से (अधि, क्षमि) पृथिवी के बीच (वितस्थानाम्) विशेष करके स्थित नदी (उत) और (विबाल्यम्) बालपन से रहित अर्थात् छोटे नहीं बड़े (सिन्धुम्) नद के (परि) सब ओर से (स्थाः) स्थित होते हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! समुद्र, नदी, नद के पार होने के लिये बुद्धि से नौका आदि को रच के लक्ष्मीवान् होओ ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघसंबन्धिनदीसंतरणविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! भवान् मायया अधि क्षमि वितस्थानां नदीमुत विबाल्यं सिन्धुं परि ष्ठाः ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (सिन्धुम्) नदम् (विबाल्यम्) विगतं बाल्यं यस्य तम् (वितस्थानाम्) विशेषेण स्थिताम् (अधि) (क्षमि) पृथिव्याम् (परि) सर्वतः (स्थाः) तिष्ठति (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्य (मायया) प्रज्ञया ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! समुद्रनदीनदतरणाय प्रज्ञया नौकादिकं निर्माय श्रीमन्तो भवन्तु ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! समुद्र, नदी, नद पार करण्यासाठी बुद्धिपूर्वक नौका इत्यादी तयार करून श्रीमंत बना. ॥ १२ ॥